विद्युत आवेश :-
घर्षणीक विद्युत :-रगड़ या घर्षण से उत्पन्न विद्युत को घर्षणीक विद्युत कहते हैं|
विद्युत आवेश :-विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं|
- धन आवेश :-कांच कि छड को जब रेशम के धागे से रगडा जाता हैतो इस से प्राप्त आवेश को धन आवेश कहते हैं|
- 2. ऋण आवेश :-एबोनाईट कि छड को ऊनके धागे से रगडा जाता है तो इस प्रकार प्राप्त आवेश को ऋण आवेश कहा जाता है|
- इलेक्ट्रानों कि कमी के कारण धन आवेश उत्पन्न होता है|
- इलेक्ट्रानों कि अधिकता से ऋण आवेश उत्पन्न होता है|
विद्युत स्थैतिकता का आधार भूत नियम :-
- समान आवेश एक दुसरे को प्रतिकर्षित करती हैं|
- असमान आवेश एक दूसरे को आकर्षित करती हैं|
स्थैतिक विद्युत :-जब विद्युत आवेश विराम कि स्थिति में रहती हैं तो इसे स्थैतिक विद्युत कहते हैं|
धारा विद्युत :-जब विद्युत आवेश गति में होता है तो इसे धारा विद्युत कहते हैं|
विद्युत धारा एवं आवेश :-जब किसी चालक से विद्युत आवेश बहता है तो हम कहते है कि चालक में विद्युत धारा है |
दुसरे शब्दों में, विद्युत आवेश के बहाव को विद्युत धारा कहते है|
विद्युत धारा को इकाई समय में किसी विशेष क्षेत्र से विद्युत आवेशों की मात्रा के बहाव से व्यक्त किया जाता है|
- विद्युत धारा किसी चालक/तार से होकर बहता है|
- विद्युत धारा एक सदिश राशि है|
इलेक्ट्रोनों का बहाव :-इलेक्ट्रोंस बैटरी के ऋणात्मक टर्मिनल पर ऋण आवेश के द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं तथा धन टर्मिनल पर धन आवेश पर आकर्षित होते हैं| इसलिए इलेक्ट्रोंस ऋण टर्मिनल धन टर्मिनल की ओर प्रवाहित होते हैं| जब ये इलेक्ट्रॉन्स धन टर्मिनल तक पहुँचते हैं तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया से वे बैट्री के अंदर स्थान्तरित हो जाते हैं और पुन: ऋण टर्मिनल पर आ जाते हैं| इस प्रकार इलेक्ट्रॉन्स प्रवाहित होते हैं|
चालक :-वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत आवेश को आसानी से प्रवाहित होने देते हैं चालक कहलाते हैं| उदाहरण : तांबा, सिल्वर, एल्युमीनियम इत्यादि|
- अच्छे चालक धारा के प्रवाह का कम प्रतिरोध करते हैं|
- कुचालकों का धारा के प्रवाह की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है|
कुचालक :-वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं होने देते हैं वे पदार्थ विद्युत के कुचालक कहलाते हैं| उदाहरण : रबड़, प्लास्टिक, एबोनाईटऔरकाँच इत्यादि|
चालकता :-चालकता किसी चालक का वह गुण है जिससे यह अपने अंदर विद्युत आवेश को प्रवाहित होने देते हैं|
अतिचालकता :-अतिचालकता किसी चालक में होने वाली वह परिघटना है जिसमें वह बहुत कम ताप पर बिल्कुल शून्य विद्युत प्रतिरोध करता है|
कूलाम्ब का नियम :-किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच आवेशों पर लगने वाले आकर्षण या प्रतिकर्षण बल, आवेशों के गुणनफल (q1q2) के अनुक्रमानुपाती होते हैं और उनके बीच की दुरी (r) के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होते हैं|
गणितीय विधि से ,
F ∝ q1q2 ……………………. (i)
F ∝ 1/ r2……………………..(ii)
k एक स्थिरांक है परन्तु k का मान दो आवेशों के बीच उपस्थित माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है|
k का निर्वात में आवेश 9 × 109 Nm2/C2 होता है|
विद्युत परिपथ :-किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं|
विद्युत का प्रवाह:- आवेशों की रचना इलेक्ट्रोन करते हैं| विद्युत धारा को धन आवेशों का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा ही विद्युत धारा की दिशा माना गया| परिपाटी के अनुसार किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों जो ऋण आवेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।
यदि किसी चालक की किसी भी अनुप्रस्थ काट से समय t में नेट आवेश Q प्रवाहित होता है तब उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित विद्युत धारा I को इस प्रकार व्यक्त करते हैंः
I = Q/t
विद्युत आवेश का SI मात्रक (unit) कूलम्ब (C) है, जो लगभग 6×1018इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है|
कूलम्ब :-विद्युत आवेश का SI मात्रक (unit) कूलम्ब (C) है, जोलगभग 6×1018 इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है |
एकइलेक्ट्रानपरआवेश = -1.6 × 10-19कूलम्ब (C).
एकप्रोटोनपरआवेश = 1.6 × 10-19कूलम्ब (C).
आवेश संरक्षण का नियम :-विद्युत आवेशों को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और नही विनाश किया जा सकता है| इसका सिर्फ एक पिंड से दुसरे पिंड तक स्थानांतरण किया जा सकता है|
एम्पियर:-यह विद्युत धारा का SI मात्रकहै| जब एक कूलम्ब आवेश को किसी चालक से 1 सेकंड तक प्रवाहित किया जाता है तो इसे 1 एम्पियर धारा कहते है|
1A = 1C/1s;
- धारा की छोटी मात्रा को मिली एम्पियर में मापा जाता है |
- (1 mA = 10-3 A) या मिली एम्पियर (1 μA = 10-6 A)
विद्युत धारा परिपथ में बैट्री या सेल के धन टर्मिनल (+) से ऋण टर्मिनल (-) की ओर प्रवाहित होती है|
ऐमीटर :-परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे ऐमीटर कहते हैं।इसे सदैव जिस परिपथ में विद्युत धारा मापनी होती है, उसके श्रेणी क्रम में संयोजित करते हैं।
गैल्वेनो मीटर :- It गैल्वेनोमीटर एक युक्ति है जो किसी विद्युत परिपथ में उपस्थित धारा का पता लगाता है|
परंपरागत धारा :-परंपरागत रूप से, धन आवेशों की गति की दिशा को धारा की दिशा माना जाता है| परंपरागत धारा की दिशा, प्रवाहित होने वाले इलेक्ट्रोनों की दिशा का विपरीत होता है|
वैद्युत स्थैतिक विभव :-विद्युत स्थैतिक विभव अनंत से किसी विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक एक कूलाम्ब के इकाई धन आवेश को लाने में कि एग ए कार्य की मात्रा से परिभाषित किया जाता है| इसका S.I मात्रक वोल्ट है|
बिभावंतर :-इलेक्ट्रोंस तभी गति करते हैं जब किसी परिपथ या चालक के दोनों सिरों के बीच वैद्युत दाब के अंतर हो, वैद्युत दाब में इसअंतर को विभवान्तर कहते हैं|
- इस विभवान्तर को बैटरी, एक या एक से अधिक सेलों को जोड़कर अथवा डायनेमो द्वारा उत्पन्न किया जाता है|
- किसी सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल के टर्मिनलों के बीच विभवांतर उत्पन्न कर देती है, ऐसा उस समय भी होता है जब सेल से कोई विद्युत धारा नहीं ली जाती।
- जब सेल को किसी चालक परिपथ अवयव से संयोजित करते हैं तो विभवांतर उस चालक के आवेशों में गति ला देता है और विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है।किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बनाए रखने के लिए सेल अपनी संचित रासायनिक ऊर्जा खर्च करता है।
वोल्टमीटर :-वोल्टमीटर एक यन्त्र है जिससे किसी चालक के दो सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर को मापा जाता है|
परिभाषा :विभवांतर की माप एक यंत्रा द्वारा की जाती है जिसे वोल्टमीटर कहते हैं।
- वोल्ट विभवान्तर :-यदि किसी विद्युत धारा वाही चालक के दो बिन्दुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को एक दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता है तो उन दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होता है।
वोल्टमीटर का संयोजन :-वोल्टमीटर को सदैव उन बिन्दुओं से पार्श्व क्रम या समांतर क्रम में संयोजित करते हैं जिनके बीच विभवांतर मापना होता है।
ऊपर दिए आकृति में जो की एक विद्युत परिपथ है में प्रतिरोधक R2 के दोनों सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर मापना है तो इसके दो सिरों पर वोल्टमीटर को पार्श्वक्रम या समांतर क्रम में संयोजित कर देंगे| जैसा आकृति में दिखाया गया है, इस प्रकार के संयोजन को पार्श्वक्रम या समान्तर क्रम कहते हैं|
सेल या बैटरी :-यह एक युक्ति है जो किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को बनाये रखने में सहायता करता है|
सेल :-सेल एक युक्ति है जो अपने अन्दर संचित रासायनिक ऊर्जा का उपयोग कर किसी चालक के दो सिरों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करता है, जिससे आवेशों के गति आती है और विद्युत धारा उत्पन्न करता है|
बैटरी :-दो या दो से अधिक सेलों के संयोजन से बने युक्ति को बैटरी कहते है|
ओम का नियम :-“किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस तार के सिरों के बीच विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है, परंतु तार का ताप समान रहना चाहिए।इसे ओम का नियम कहते हैं।”इस नियम के अनुसार,
V ∝ I
Or V = RI
इस विभव-धारा ग्राफ को देखिए
हम देखते हैं कि विभवान्तर बढ़ने के साथ-साथ विद्युत धारा का मान भी बढ़ जाता है और विभवान्तर घटने से धारा भी घट जाता है अर्थात इनमें अनुक्रमानुपाति संबंध है| इसे ही ओम का नियम कहते है |
प्रतिरोध :-प्रतिरोध चालक का वह गुण है जिससे वह अपने से होकर प्रवाहित होने वाले विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है| चालक के इस गुण को प्रतिरोध कहते हैं| ओम के नियम के उपयोग से:
प्रतिरोध = विभवान्तर/धारा
- प्रतिरोधका SI मात्रक Ohm(Ω) है|
- V/I = R, जोकिएकस्थिरांकहै|
- ओमप्रतिरोध :- it यदि किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवान्तर 1 V है तथा उससे 1 A विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब उस चालक का प्रतिरोध R, 1 Ω होता है|
जब परिपथ में से 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही हो तथा विभवांतर एक वोल्टका हो तो प्रतिरोध 1 ओम कहलाता है।
- परिवर्ती प्रतिरोध :-स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं
धारानियंत्रक :-परिपथमेंप्रतिरोधकोपरिवर्तितकरनेकेलिएजिसयुक्तिकाउपयोगकियाजाताहैउसेधारानियंत्रककहतेहैं।
वेकारकजिनपरएकचालककाप्रतिरोधनिर्भरकरताहै :-
- चालककीलम्बाईकेसमानुपातीहोताहै।
- अनुप्रस्थकाटकेक्षेत्रफलकेव्युत्क्रमानुपातीहोताहै।
- तापमानकेसमानुपातीहोताहै।
- पदार्थकीप्रकृतिपरभीनिर्भरकरताहै।
प्रतिरोधता :-1 मीटरभुजावालेघनकेविपरीतफलकोंमेंसेधारागुजरनेपरजोप्रतिरोधउत्पन्नहोताहैवहप्रतिरोधताकहलाताहै।
प्रतिरोधकताका SI मात्रक Ωm है।
- प्रतिरोधकताचालककीलम्बाईवअनुप्रस्थकाटकेक्षेत्रफलकेसाथनहींबदलतीपरन्तुतापमानकेसाथपरिवर्तितहोतीहै।
- धातुओंवमिश्रधातुओंकाप्रतिरोधकतापरिसर-10-8-10-6Ωm ।
- मिश्रधातुओंकीप्रतिरोधकताउनकीअवयवीधातुओंसेअपेक्षाकृतःअधिकहोतीहै।
- मिश्रधातुओंकाउच्चतापमानपरशीघ्रहीउपचयन (दहन) नहींहोताअतःइनकाउपयोगतापनयुक्तियोंमेंहोताहै।
- तांबावऐलूमिनियमकाउपयोगविद्युतसंरचरणकेलिएकियाजाताहैक्योंकिउनकीप्रतिरोधकताकमहोतीहै।
प्रतिरोधकोंकाश्रेणीक्रमसंयोजन :-
- श्रेणीक्रमसंयोजन :-जबदोयातीनप्रतिरोधकोंकोएकसिरेसेदूसरासिरामिलाकरजोड़ाजाताहैतोसंयोजनश्रेणीक्रमसंयोजनकहलाताहै।
- श्रेणीक्रममेंकुलप्रभावितप्रतिरोध :-RS = R₁ + R₂ + R₃
- V = V₁ + V₂ + V₃
- V₁ = IR₁ V₂ = IR₂ V₃ = IR₃
- V₁ + V₂ + V₃ = IR₁ + IR₂ + IR₃
- V = I(R₁ + R₂ + R₃) (V₁ + V₂ + V₃ = V)
- IR = I(R₁ + R₂ + R₃)
- R = R₁ + R₂ + R₃
अत : एकलतुल्यप्रतिरोधसबसेबड़ेव्यक्तिगतप्रतिरोधसेबड़ाहै।
पार्श्वक्रममेंसंयोजितप्रतिरोधक :-
पार्श्वक्रमसंयोजन :-जबतीनप्रतिरोधकोंकोएकसाथबिंदुओं X तथा Y केबीचसंयोजितकियाजाताहैतोसंयोजनपार्श्वक्रमसंयोजनकहलाताहै।
पार्श्वक्रममेंप्रत्येकप्रतिरोधककेसिरोंपरविभवांतरउपयोगकिएगएविभवांतरकेबराबरहोताहै।तथाकुलधाराप्रत्येकव्यष्टिगतप्रतिरोधकमेंसेगुजरनेवालीधाराओंकेयोगकेबराबरहोतीहै।
- I = I₁ + I₂ + I₃
- एकलतुल्यप्रतिरोधकाव्युत्क्रमप्रथक।
- प्रतिरोधोंकेव्युत्क्रमोंकेयोगकेबराबरहोताहै।
श्रेणीक्रमसंयोजनकीतुलनामेंपार्यक्रमसंयोजनकेलाभ :-
- श्रेणीक्रमसंयोजनमेंजबएकअवयवखराबहोजाताहैतोपरिपथटूटजाताहैतथाकोईभीअवयवकामनहींकरता।
- अलग-अलगअवयवोंमेंअलग-अलगधाराकीजरूरतहोतीहै , यहगुणश्रेणीक्रममेंउपयुक्तनहींहोताहैक्योंकिश्रेणीक्रममेंधाराएकजैसीरहतीहै।
- पार्श्वक्रमसंयोजनमेंप्रतिरोधकमहोताहै।
विधुतधाराकातापीयप्रभाव :-यदिएकविद्युत्परिपथविशुद्धरूपसेप्रतिरोधकहैतोस्रोतकीऊर्जापूर्णरूपसेऊष्माकेरूपमेंक्षयितहोतीहै, इसेविद्युत्धाराकातापीयप्रभावकहतेहैं।
- ऊर्जा = शक्ति x समय
- H = P × t
- H = VIt। P = VI
- H = I²Rt V = IR
H = ऊष्माऊर्जा
- अत : उत्पन्नऊर्जा ( ऊष्मा ) = I²Rt
जूल का विद्युत्धारा का ताप नियम इस नियम केअनुसार :-
- किसीप्रतिरोधमेंतत्पन्नउष्माविद्युत्धाराकेवर्गकेसमानुपातीहोतीहै।
- प्रतिरोधकेसमानुपातीहोतीहै।
- विद्युतधाराकेप्रवाहितहोनेवालेसमयकेसमानुपातीहोतीहै।
- तापनप्रभावहीटर, प्रेसआदिमेंवांछनीयहोताहैपरन्तुकम्प्यूटर, मोबाइलआदिमेंअवांछनीयहोताहै
- विद्युतबल्बमेंअधिकांशशक्तिऊष्माकेरूपप्रकटहोतीहैतथाकुछभागप्रकाशकेरूपमेंउत्सर्जितहोताहै।
- विद्युतबल्बकातंतुटंगस्टनकाबनाहोताहैक्योंकि
- यहउच्चतापमानपरउपचयितनहींहोताहै।
- इसकागलनांकउच्च (3380° C) है।
- बल्बोंमेंरासानिकदृष्टिसेअक्रियनाइट्रोजनतथाआर्गनगैसभरीजातीहैजिससेतंतुकीआयुमेंवृद्धिहोजातीहै।
विधुतशक्ति :-कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं।ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर को भी शक्ति कहते हैं।किसी विद्युत परिपथ में उपभुक्त अथवा क्षयित विद्युत ऊर्जा की दर प्राप्त होती है।इसे विद्युत शक्ति भी कहते हैं।शक्ति P को इस प्रकार व्यक्त करते हैं। P = VI
- शक्ति का SI मात्रक = वाटहै।
- 1 वाट 1 वोल्ट × 1 ऐम्पियर
- ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक = किलो वाट घंटा (Kwh)
- 1 kwh = 3.6 x 10⁶J
- 1 kwh = विद्युत ऊर्जा की एक यूनिट
